“एक बात कहूँ पापा, आपका बेटा तो मुझे घास ही नहीं डालता है… वो भी मेरे साथ ऐसे ही करता है !” कोमल ने दुखी मन से कहा।
“क्या तो … तू भी… ऐसे ही…?”
“हाँ पापा… मेरे मन में भी तो इच्छा होती है ना !”
“देखो तुम भी दुखी, मैं भी दुखी…” मैंने उसके मन की बात समझ ली… उसे भी चुदाई चाहिये थी… पर किससे चुदाती… बदनाम हो जाती… कहीं ???… कहीं इसे मुझसे चुदना तो नहीं है… नहीं… नहीं… मैं तो इसका बाप की तरह हूँ… छी:… पर मन के किसी कोने में एक हूक उठ रही थी कि इसे चुदना ही है।
कोमल ने बत्ती बन्द कर दी।
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मैंने बिस्तर पर लेते लेटे कोमल की तरफ़ देखा।
उसकी बड़ी बड़ी प्यासी आँखें मुझे ही घूर रही थी।
मैंने भी उसकी आँखों से आँखें मिला दी।
कोमल बिना पलक झपकाये मुझे प्यार से देखे जा रही थी।
वो मुझे देखती और आह भरती… मेरे मुख से भी आह निकल जाती। आँखों से आँखें चुद रही थी। चक्षु-चोदन काफ़ी देर तक चलता रहा… पर जरूरत तो लण्ड और चूत की थी।
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आधे घण्टे बाद ही सुमन के कमरे में रोशनी हो उठी।
कोमल उठ गई।
उसकी वासना भरी निगाहें मैं पहचान गया।
“पापा वो लाईट देखो… आओ देखें…” हम दोनों दबे पांव खिड़की पर आ गये।
कल की तरह ही खिड़की का पट थोड़ा सा खुला था। कोमल और मैंने एक साथ अन्दर झांका। सुरेश ने अपने कपड़े उतार रखे थे और सुमन के कपड़े उतार रहा था।
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नंगे हो कर अब दोनों एक दूसरे के अंगों को सहला रहे थे।
अचानक मुझे लगा कि कोमल ने अपनी गाण्ड हिला कर मेरे से चिपका ली है।
अन्दर का दृश्य और कोमल की हरकत ने मेरा लौड़ा खड़ा कर दिया… मेरा खड़ा लण्ड उसकी चूतड़ों की दरार में रगड़ खाने लगा।
उधर सुमन ने लण्ड पकड़ कर उसे मसलना चालू कर दिया था और बार-बार उसे अपनी चूत में घुसाने का प्रयत्न कर रही थी।
अनायास ही मेरा हाथ कोमल की चूचियों पर गया और मैंने उसकी चूचियाँ दबा दी। उसके मुँह से एक आह निकल गई।
मुझे पता था कि कोमल का मन भी बेचैन हो रहा था। मैंने नीचे लण्ड और गड़ा दिया।
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उसने अपने चूतड़ों को और खोल दिया और लण्ड को दरार में फ़िट कर लिया।
कोमल ने मुझे मुड़ कर देखा।
फ़ुसफ़ुसाती हुई बोली,”पापा… प्लीज… अपने कमरे में !” मैं धीरे से पीछे हट गया।
उसने मेरा हाथ पकड़ा… और कमरे में ले चली।
“पापा… शर्म छोड़ो… और अपने मन की प्यास बुझा लो… और मेरी खुजली भी मिटा दो !” उसकी विनती मुझे वासना में बहा ले जा रही थी।
“पर तुम मेरी बहू हो… बेटी समान हो…” मेरा धर्म मुझे रोक रहा था पर मेरा लौड़ा… वो तो सर उठा चुका था, बेकाबू हो रहा था।
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मन तो कह रहा था प्यारी सी कोमल को चोद डालूँ…
“ना पापा… ऐसा क्यों सोच रहे हैं आप? नहीं… अब मैं एक सम्पूर्ण औरत हूँ और आप एक सम्पूर्ण मर्द… हम वही कर रहे हैं जो एक मर्द और औरत के बीच में होता है।” कोमल ने मेरा लण्ड थाम लिया और मसलने लगी।
मेरी आह निकल पड़ी। जवानी लण्ड मांग रही थी।
मेरा सारा शरीर जैसे कांप उठा,”देखा कैसा तन्ना रहा है… बहू !”
“बहू घुस गई गाण्ड में पापा…रसीली चूत का आनन्द लो पापा…!” कोमल पूरी तरह से वासना में डूब चुकी थी।
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मेरा पजामा उसने नीचे खींच दिया। मेरा लौड़ा फ़ुफ़कार उठा।
“सच है कोमल… आजा अब जी भर के चुदाई कर ले… जाने ऐसा मौका फिर मिले ना मिले। ” मैं कोमल को चोदने के लिये बताब हो उठा।
“मेरा पजामा उतार दो ना और ये टॉप… खीच दो ऊपर… मुझे नंगी करके चोद दो … हाय…” मैंने उसका पजामा जो पहले ही चूतड़ों तक था उसे पूरा उतार दिया और टॉप ऊपर से उतार दिया।
उसका सेक्सी शरीर भोगने लिये मेरा लौड़ा तैयार था।
मैं बहू बेटी का रिश्ता भूल चुका था। बस लण्ड चूत का रिश्ता समझ में आ रहा था।
हम दोनों आपस में लिपट पड़े और बिस्तर पर कूद पड़े।
उसने मेरे शरीर को नोचना और दबाना चालू कर दिया और और अपने होंठों को मेरे चेहरे पर बुरी तरह रगड़ने लगी।
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उसके दांत जैसे मेरे गालों पर गड़ गये।
उसकी नई बेताब जवानी, मुझ पर भारी पड़ रही थी।
उसके इस कदर नोचने खरोंचने से मेरे मुख एक धीमी सी चीख निकल पड़ी।
मेरा लण्ड उफ़ान पर आ गया।
वो मेरे ऊपर सवार थी, उसकी चूत मेरे लण्ड पर बार बार पटकनी खा रही थी।
मुझसे सहा नहीं जा रहा था।
“कोमल… चुदवा ले ना अब… देख मेरी क्या हालत हो गई है।” उसने प्यार से मेरे लण्ड को दबा लिया और चूत को ऊपर उठा कर सेट कर लिया और लौड़ा चूत में समा लिया।
मुझे लगा जैसे बरसों की इच्छा पूरी हो गई हो।
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जो चीज़ मुश्किल से मिलती है वो अनमोल होती है। इसलिये मुझे लगा कि कोमल को नाराज नहीं करना चाहिये, वर्ना मेरा लण्ड फिर से लटका ही रह जायेगा।
मैं उसकी चूत में लण्ड धीरे-धीरे अन्दर बाहर करने लगा।
पर उसकी जवानी तो तेजी मांग रही थी।